Monday, September 30, 2019

कुछ बाक़ी है......

कुछ बाक़ी है...... 

किताबनुमा ज़िंदगी के कुछ पन्ने पढ़ लिए गए
तो कुछ अभी बाक़ी हैं। 
लो आज कुछ और तजुरबे जुड़ गए 
तो कुछ तजुरबों से धूल हटाना बाक़ी है। 
कुछ और सफ़ेदी ने जगह ले ली स्याही की 
तो कुछ और अभी बाक़ी है। 

कुछ झुर्रियाँ जुड़ींकुछ हड्डियाँ घिसीं 
फिर भी दौड़ लगाना बाक़ी है। 
नन्ही सी कली खिली 
जिसे फूल बनाना बाक़ी है।
यूँ तो एक ही साल जुड़ा है उम्र की इस माला में 
और ना जाने कितने मोती बाक़ी हैं।
ऐ! ख़ुदा बस एक ही इल्तिजा है आप से मेरी, 
आपकी इबादत में गुज़रे जितनी भी उम्र बाक़ी है। 
जितनी भी उम्र बाक़ी है। 

meना 

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