कुछ बाक़ी है......
किताबनुमा ज़िंदगी के कुछ पन्ने पढ़ लिए गए
तो कुछ अभी बाक़ी हैं।
तो कुछ अभी बाक़ी हैं।
लो आज कुछ और तजुरबे जुड़ गए
तो कुछ तजुरबों से धूल हटाना बाक़ी है।
तो कुछ तजुरबों से धूल हटाना बाक़ी है।
कुछ और सफ़ेदी ने जगह ले ली स्याही की
तो कुछ और अभी बाक़ी है।
तो कुछ और अभी बाक़ी है।
कुछ झुर्रियाँ जुड़ीं, कुछ हड्डियाँ घिसीं
फिर भी दौड़ लगाना बाक़ी है।
नन्ही सी कली खिली
जिसे फूल बनाना बाक़ी है।
जिसे फूल बनाना बाक़ी है।
यूँ तो एक ही साल जुड़ा है उम्र की इस माला में
और ना जाने कितने मोती बाक़ी हैं।
और ना जाने कितने मोती बाक़ी हैं।
ऐ! ख़ुदा बस एक ही इल्तिजा है आप से मेरी,
आपकी इबादत में गुज़रे जितनी भी उम्र बाक़ी है।
आपकी इबादत में गुज़रे जितनी भी उम्र बाक़ी है।
जितनी भी उम्र बाक़ी है।
meना
Kya khoob likha h
ReplyDeleteThank you :)
DeleteVery nice...
ReplyDeleteThank you :)
Delete👍👍👌👌nice
ReplyDeleteThank you :)
DeleteVery nice.
ReplyDeleteThank you. :)
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ReplyDeleteVery nice.
ReplyDeleteThank you ma'am. :)
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