Saturday, September 14, 2019

भाषा की खिचड़ी

)                                                                                                                              ०६/०८/२०१९
नमस्कार सबको 🙏🏻

आज ( १४/०९/२०१९ ) हिंदी दिवस के इस अवसर पर प्रस्तुत करती हूँ भाषा की व्यथा।उम्मीद करती हूँ कि आप इसे भी उतना ही पसंद करेंगे जितना कि आपने मेरी अन्य कविताओं को पसंद किया है।आप सबके प्रोत्साहन और सराहना के लिए दिल से आभारी हूँ। आप सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 


                    भाषा की खिचड़ी 


लुप्त हो रही है मातृभाषाअशुद्ध हो रही है राष्ट्रभाषा,
क्याहम कर सकते हैं आनेवाली पीढ़ी से आशा 
कि वह रखेगी सहेजकर दोनों भाषा ?

सदियों से भारत ऐसा देश रहा है, 
जिसने हर भाषा को अपना कहा है 
यहाँ तक कि अंग्रेज़ों को खदेड़ दिया देश से, 
पर अंग्रेज़ी को लगा लिया सीने से। 
यही ख़ूबी है मेरे मुल्क की,
कि यहाँ कई बोलियाँ बोली  लिखी जाती हैं। 
भिन्नता में एकता ही हमारा शक्ति सूत्र कहलाती है। 
खंडित हो रही है एकताक्षीण हो रही है शक्ति,  
जबसे नयी पीढ़ी ने कर ली है हिंगलिश से संधि। 

हिंगलिश बनती है हिंदी और इंग्लिश के खेल से, 
जैसे खिचड़ी बनती है दाल और चावल के मेल से। 
आश्चर्य है कि खिचड़ी भाती नही, 
पर हिंगलिश चटकारे लेकर खाते हैं 
और तो और नित नए स्वरूप में परोसे भी जाते हैं। 
हर जगह आपको मिल जाती है यह-
रोज़मर्रा के बोलचाल मेंअख़बारों  टी॰वी॰ के समाचारों में। 
यह ऐसी महामारी की तरह फैल रही है, 
कि कोई नहीं बचा इसकी चपेट में आने से। 

आज हम स्वदेशी से सर्वदेशिय(cosmopolitan) होते जा रहे हैं,
शुद्धता से मिलावट की ओर बढ़ रहे हैं, 
और इसे विकास कह रहे हैं!
मिलावट पसंद नहीं खाद्य और पेय पदार्थों में,
लेकिन भाषा में मिलावट किए जा रहे हैं। 

यह तो बात हुई अपनी राष्ट्रभाषा की,
आइए ज़रा ग़ौर फ़रमाते हैं मातृभाषा पर भी। 
राष्ट्रभाषा की तो बनी है खिचड़ी,
पर मातृभाषा की हालत तो है उससे भी बिगड़ी
ये वह व्यंजन है जिसकी पढ़ने-लिखने की विधि 
कुछ वर्षों बाद पुरातत्व की किसी किताब में मिलेगी। 

प्रादेशिक भाषा के विद्यालय हो रहे हैं बंद,
क्यूँ कि अंग्रेज़ी माध्यम में पढ़ाने का छाया है अंध। 
नई पीढ़ी को, पढ़ना लिखना ना सही 
कम से कम अपनी भाषा में बोलना तो सिखाइए
अन्यथा आगे चलक पछताते रह जाइए। 
भिन्न भाषाओंवेश भूषाओं और रंगों के इस देश को 
एक ही रंग रूप में देखते रह जाइए। 
इसलिए निवेदन है सबसे 🙏🏻
ना लुप्त होने दें मातृभाषा को और शुद्ध ही रहने दें राष्ट्रभाषा को। 
धन्यवाद 😊🙏🏻

meना
** यह कविता केवल निजी सोच को दर्शाती है। 

16 comments: