Monday, September 30, 2019

कुछ बाक़ी है......

कुछ बाक़ी है...... 

किताबनुमा ज़िंदगी के कुछ पन्ने पढ़ लिए गए
तो कुछ अभी बाक़ी हैं। 
लो आज कुछ और तजुरबे जुड़ गए 
तो कुछ तजुरबों से धूल हटाना बाक़ी है। 
कुछ और सफ़ेदी ने जगह ले ली स्याही की 
तो कुछ और अभी बाक़ी है। 

कुछ झुर्रियाँ जुड़ींकुछ हड्डियाँ घिसीं 
फिर भी दौड़ लगाना बाक़ी है। 
नन्ही सी कली खिली 
जिसे फूल बनाना बाक़ी है।
यूँ तो एक ही साल जुड़ा है उम्र की इस माला में 
और ना जाने कितने मोती बाक़ी हैं।
ऐ! ख़ुदा बस एक ही इल्तिजा है आप से मेरी, 
आपकी इबादत में गुज़रे जितनी भी उम्र बाक़ी है। 
जितनी भी उम्र बाक़ी है। 

meना 

Wednesday, September 25, 2019

बिटिया

Dear readers,
Greetings to all. Today, I chose to write on the above mentioned title as I wanted to convey the feelings of every mother ( actually every parent ) of a daughter in the world. I hope you will like it. It's a late post on the occasion of “Daughters' Day”. Thank you all once again for appreciating my work. I also thank to those who have directly or indirectly helped me to improve my write up.

प्रिय पाठकगण,
नमस्कार। आज मैंने अपनी इस कविता जिसका शीर्षक है "बिटिया" द्वारा दुनिया की हर बेटी की माँ ( माता-पिता ) की भावनाएँ व्यक्त करने का प्रयास किया है। आशा करती हूँ यह आपको पसंद आएगी। आप सबका धन्यवाद और उन सबका भी तहे दिल से धन्यवाद करती हूँ जिन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मेरे कार्य को निखारने में मेरी सहायता की है।
                                                                                                                                                               २४/०९/२०१९

 👧*बिटिया* 👨👩👧



जिस घर में होती हैं बेटियाँ  
उस घर में सदा रहती हैं ख़ुशियाँ। 
घर को जीवंत रखती हैं उसकी किलकारियाँ,
उसका हँसना, खेलना और शैतानियाँ। 

ख़ुश-नसीब है वह दंपति जिनके घर पैदा होती हैं बेटियाँ,
तरस आता है उन लोगों पर जो त्याग देते हैं बेटियाँ,
और घर ले आते हैं बद-नसीबियाँ। 

बेटी का जन्म लेना जैसे बाग़ में कली का खिलना,
अत्यंत मासूम, सुंदर और कोमल जिसका दिखना। 
आसान नहीं है कली का फूल बनना,
कई कठिनाइयों व परिवर्तनों से इसे पड़ता है गुज़रना। 
कभी समाज की दर्दनाक बुराइयों से इसे पड़ता है जूझना।  

बेटी के माता-पिता को आज डर-डर के है जीना पड़ता। 
समय की गुहार है कि हर कली व फूल को अंगार है बनाना, 
उसे आत्मरक्षा के गुर हैं सिखाना। 

आगे की पंक्तियाँ एक माँ की है भावना 
आओ, इसे महसूस करें जो वह 
अपनी बेटी से चाहती है कहना। 

माँ हूँ मैं तुम्हारी हर कही अनकही बात भाँप लेती हूँ,
हो सकता है कभी मैं चूक जाऊँ समझना तुम्हें,
क्यूँ 
कि आख़िर मैं भी तो एक इंसान हूँ। 

हो सकता है कोई ऐसी बात जो

तुम मुझसे कहना चाहो पर कह ना सको, 
रोना चाहो पर रो ना सको, 
ख़ुशी को अपनी दिखा ना सको। 
यह सोच के कि डाँट पड़ेगी या समाज में खिल्ली उड़ेगी,
मत दबाना आवाज़ तुम अपनी और न बाँध लेना अश्रु तुम्हारे, 
क्यूँ कि हम माँ-बाबा हैं तुम्हारे जो सदैव से संग खड़े हैं तुम्हारे। 

ऐ बिटिया, बोल देना हर छोटी बड़ी बात जो तुम्हें है सताती, 
बाँट लेना हर मानसिक और शारीरिक पीड़ा तुम्हारी। 
ना चुप-चुप के सहना, ना घुट-घुट के रहना, 
क्यूँ कि माँ बाबा तुम्हारे साथ हैं ये मत भूलना।क्यूँ कि माँ बाबा तुम्हारे साथ हैं ये मत भूलना।

meना


Saturday, September 14, 2019

भाषा की खिचड़ी

)                                                                                                                              ०६/०८/२०१९
नमस्कार सबको 🙏🏻

आज ( १४/०९/२०१९ ) हिंदी दिवस के इस अवसर पर प्रस्तुत करती हूँ भाषा की व्यथा।उम्मीद करती हूँ कि आप इसे भी उतना ही पसंद करेंगे जितना कि आपने मेरी अन्य कविताओं को पसंद किया है।आप सबके प्रोत्साहन और सराहना के लिए दिल से आभारी हूँ। आप सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 


                    भाषा की खिचड़ी 


लुप्त हो रही है मातृभाषाअशुद्ध हो रही है राष्ट्रभाषा,
क्याहम कर सकते हैं आनेवाली पीढ़ी से आशा 
कि वह रखेगी सहेजकर दोनों भाषा ?

सदियों से भारत ऐसा देश रहा है, 
जिसने हर भाषा को अपना कहा है 
यहाँ तक कि अंग्रेज़ों को खदेड़ दिया देश से, 
पर अंग्रेज़ी को लगा लिया सीने से। 
यही ख़ूबी है मेरे मुल्क की,
कि यहाँ कई बोलियाँ बोली  लिखी जाती हैं। 
भिन्नता में एकता ही हमारा शक्ति सूत्र कहलाती है। 
खंडित हो रही है एकताक्षीण हो रही है शक्ति,  
जबसे नयी पीढ़ी ने कर ली है हिंगलिश से संधि। 

हिंगलिश बनती है हिंदी और इंग्लिश के खेल से, 
जैसे खिचड़ी बनती है दाल और चावल के मेल से। 
आश्चर्य है कि खिचड़ी भाती नही, 
पर हिंगलिश चटकारे लेकर खाते हैं 
और तो और नित नए स्वरूप में परोसे भी जाते हैं। 
हर जगह आपको मिल जाती है यह-
रोज़मर्रा के बोलचाल मेंअख़बारों  टी॰वी॰ के समाचारों में। 
यह ऐसी महामारी की तरह फैल रही है, 
कि कोई नहीं बचा इसकी चपेट में आने से। 

आज हम स्वदेशी से सर्वदेशिय(cosmopolitan) होते जा रहे हैं,
शुद्धता से मिलावट की ओर बढ़ रहे हैं, 
और इसे विकास कह रहे हैं!
मिलावट पसंद नहीं खाद्य और पेय पदार्थों में,
लेकिन भाषा में मिलावट किए जा रहे हैं। 

यह तो बात हुई अपनी राष्ट्रभाषा की,
आइए ज़रा ग़ौर फ़रमाते हैं मातृभाषा पर भी। 
राष्ट्रभाषा की तो बनी है खिचड़ी,
पर मातृभाषा की हालत तो है उससे भी बिगड़ी
ये वह व्यंजन है जिसकी पढ़ने-लिखने की विधि 
कुछ वर्षों बाद पुरातत्व की किसी किताब में मिलेगी। 

प्रादेशिक भाषा के विद्यालय हो रहे हैं बंद,
क्यूँ कि अंग्रेज़ी माध्यम में पढ़ाने का छाया है अंध। 
नई पीढ़ी को, पढ़ना लिखना ना सही 
कम से कम अपनी भाषा में बोलना तो सिखाइए
अन्यथा आगे चलक पछताते रह जाइए। 
भिन्न भाषाओंवेश भूषाओं और रंगों के इस देश को 
एक ही रंग रूप में देखते रह जाइए। 
इसलिए निवेदन है सबसे 🙏🏻
ना लुप्त होने दें मातृभाषा को और शुद्ध ही रहने दें राष्ट्रभाषा को। 
धन्यवाद 😊🙏🏻

meना
** यह कविता केवल निजी सोच को दर्शाती है। 

Friday, September 6, 2019

टीचर (Teacher)

  ०५/०९/२०१९

   सच ही कहा है किसी ने कि....
                     Teacher 
Being one is the highest privilege. 
Having one is the best blessing. 
शिक्षक होना एक सर्वोच्च विशेषाधिकार है। 
शिक्षक पाना ( मिलना ) सर्वोत्तम आशीर्वाद है। 

और मैं ख़ुश क़िस्मत हूँ कि मैंने मेज़ के दोनो तरफ़ का अनुभव किया है। 
एक ओर मासूमअबोध बालक होने का तो दूसरी ओर ज़िम्मेदार  उत्साहपूर्ण शिक्षिका होने का।

                         टीचर


टीचर टीचर टीचर .... 
सुनकर ये शब्द मन यादों से जाता है भर। 
टीचर होते हैं जादूगर 
जो बाँटते हैं ज्ञान का ख़ज़ाना प्यार का पढ़ के मंतर। 

आज भी याद है मुझे मेरे शिक्षकों के पढ़ाने का तरीक़ा,
सोशल की टीचर का साड़ी पहनने का सलीक़ा। 
वो गणित के सर का गर्दन हिलाना और 
केमिस्ट्री की मैडम का ख़ास लहजे में “ पोटेशियम “ दोहराना। 
एक बार अंग्रेज़ी की मैडम का मेरा उच्चारण ठीक करना 
जिस पर पूरी क्लास का हँस पड़ना। 
और तो और मेरी बी॰एड कॉलेज की प्रधानाचार्य मैडम का मुझे लीडर समझना। 

कैसे भूल सकती हूँ मैं वे सालवे लमहें 
जिन्हें मैंने एक शिक्षिका होके थे जिए, 
याद आते हैं वे भोले  शरारती बच्चे 
जो मुझे अपनी पसंदीदा टीचर थे बनाए। 

याद आता है छात्रों का सीखने का उत्साह और नया जानने की जिज्ञासा। 
बचे समय में उनका मुझसे कहानी सुनाने का आग्रह करना। 
किसी अध्यापक की अनुपस्थिति में, 
उनकी कक्षा में जाने पर बच्चों का ख़ुश होके चिल्लाना। 
कभी शोर मचाती कक्षा के दरवाज़े पर चुप चाप खड़े होना 
और यह देख बच्चों का शांत हो जाना। 
कापियाँ और उत्तर पत्रिकाएँ जाँचने के लिए घर लाना। 

याद आता है छात्रों का मेरे प्रति प्यार  इज़्ज़त
जो आज भी उनके दिलों में है सलामत। 
उनका शिक्षक दिवस पर ग्रीटिंग कार्ड बनाकर देना,
स्कूल की तरफ़ से शिक्षकों को स्टेज पर बुलाके सम्मानित करना। 

याद आता है ये सब और बहुत कुछ,
क्यूँ कि यही है मेरा सब कुछ। 
टीचर होना नहीं आसान सचमुच। 

मेरे सभी शिक्षक-शिक्षिकाओं को शिक्षक दिन की हार्दिक शुभकामनाएँ। 
meना   
**इस कविता में कुछ अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग करने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।