Sunday, June 6, 2021

आख़िर तुम भी हमें छोड़ चली गईं?!

 ०५/०६/२०२१  


भाई बहनों में सबसे छोटी 

पर काम बड़े तुम कर गईं। 

कहने को थीं तुम बुआ हमारी 

पर प्यार बहन सा दे गईं। 

ग़म इस बात का सता रहा कि

आख़िर तुम भी हमें छोड़ चली गईं?!


रोका गया था तुम्हें मिलने से 

खुद अपने ही भाई से। 

देख  सकी उन्हें तुम 

उनकी अंतिम विदाई में।

इतनी जल्दी थी मिलने की उनसे 

कि सबको पीछे कर गईं!

आख़िर तुम भी हमें छोड़ चली गईं?!


सुना था तुम्हारी बीमारी का जब से 

चैन नहीं था मुझे भी तब से। 

किस मुँह से प्रार्थना करती 

कि तुम्हें परम शांति प्राप्त हो। 

क्योंकि दिल की तमन्ना यही थी 

इसी जीवन में तुम्हें सुख प्राप्त हो। 

पर तुम तो परमात्मा में लीन हो गईं 

आख़िर तुम भी हमें छोड़ चली गई?!


नींद नहीं आती अब रात को 

जी करता है झुठला दूँ इस बात को। 

पर सच तो यही है कि

अब तुम नहींतुम्हारी यादें रह गईं। 

आख़िर तुम भी हमें छोड़ चली गईं?!


दुख कहाँ नहीं होते?

कष्ट किसे नहीं होते?

और उन्हें सहने की सीमा 

हर-एक की तय होती है। 

तुम तो सारी सीमाएँ पार कर गईं!

आख़िर तुम भी हमें छोड़ चली गईं?!


अब  सहना पड़ेगा कुछ भी तुम्हें

तुम जो गई हो प्रभु के चरणों में। 

मुस्कुराते हुए अपने चेहरे से 

सबके दिलों में जगह बना गईं। 

बाहर से  बोलेंगे शायद 

मन में फुसफुसा लेंगे कभी कि

आख़िर तुम भी हमें छोड़ चली गईं?! 




meना

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