२२/०५/२०२१
देखने जाते थे जिन्हें कभी
चिड़ियाघरों और अभ्यारण्यों में
अक्सर चले आते हैं वे आज देखने
मनुष्यों को उनकी ही बस्तियों में।
कुछ ऐसे ही, चला आया एक मोर
कल मेरी भी गली में।
देखने उस अद्भुत नज़ारे को
अचल हुई और वहाँ से न हिली मैं।
इधर-उधर देखते हुए टहल रहा था
वो जिस अन्दाज़ से,
मानो पूछ रहा हो वो
“कैसे हो” हम सबसे।
देख उसकी बेबाक़ी और
बिना मास्क उसकी छवि
सच पूछो तो, अच्छा तो खूब लगा
पर दिल में हुई कसक भी।
दिल ने कहा....
ऐ मोर! आज जो ये तुम टहल रहे हो
बस्ती में मेरी बिना ख़ौफ़ खाए।
दुआ करो कि हम भी घूमें ऐसे
बिना कोई मास्क लगाए।
meना
Bahut khoob
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏🏻
DeleteLovely...
ReplyDeleteThank you.
DeleteBadhiya
ReplyDeleteDhanyvad 🙏🏻
DeleteWah wah.
ReplyDeleteDhanyvad 🙏🏻
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