Sunday, August 4, 2019

सखी वर्षा

"सखी वर्षा" 

आओ सखी, बरसो सखी
पूरे तेईस दिनों बाद आई हो सखी।
माफ़ करना, तीन रोज़ पहले भी तो
तुम आईं थी सखी।
रातभर बरसी थी शायद,
सुबह गीली सौंधी मिट्टी ने
दिलायी थी तुम्हारी याद। 

                                          अब क्या बताऊँ सखी
तुम्हारे पहली बार आकर जाने के बाद,
कितनी आयी हम सबको तुम्हारी याद !
तुम जो न थीं गीला करने को,
पसीने ने भिगो दिया हम सबको।
पर आज तो मान गए तुमको,
क्या ख़ूब बरसी हो !
ढोल ताशे आतिशबाज़ी के साथ बरसी हो।

बाहर बिजली⚡️ क्या कड़की,
घर की बिजली गुल हो गयी।
पर सखी वायु ऐसी चली
कि भीतर बाहर cool कर गयी।

सुनो, तुम्हारा आना अच्छा लगा। 
ऐसे ही आती रहना, अपना प्यार बरसाती रहना।
भला बताओ, अपनों को कोई न्योता देता है क्या?
पर तुम तो ‘वर्षा रानी’ हो,
तुम्हें आदर देना तो बनता है ना।

बस, एक निवेदन  है तुमसे,
जहाँ है प्यासी धरती वहाँ तुम्हारी मेहर बरसे।
और जहाँ है रौद्र रूप दिखलाया,
वहाँ तू विराम से बरसे। 

आभार-आभार-आभार-
तुम आयीं हमारे द्वार। 

meना

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