१९/०४/२०२१
ऐ दिल, जानते थे तुम
इक दिन ऐसा हो जाएगा
मेरा अपना मुझसे खो जाएगा।
फिर क्यूँ स्वीकार नहीं करते
कि जानेवाला लौटके नहीं आएगा!?
प्रस्तुत कविता मेरे स्वर्गीय पिताजी को समर्पित है जिन्हें मैंने हाल ही में कोविड की दूसरी लहर के दौरान खोया है। ईश्वर उन्हें अपनी शरण में रखें इसी प्रार्थना व कामना के साथ। 🙏
देखी हर तकलीफ़ जिन्होंने
फिर भी डटे रहे वे लड़ने।
हिम्मत न हारना किसी भी हाल में
सीखा उनसे ही है हमने।
जी हाँ वो मेरे पापा ही हैं
जी हाँ वो मेरे पापा ही हैं।
कैसे समझाऊँ अब दिल को
अब न सुनाई देगी आवाज़ वो
कहती थी जो.....
“ बेटा अपना ख़याल रखो तुम
अब अपनी सेहत बनाओ तुम।”
अब कौन जन्म दिन पे फ़ोन करेगा
एक नहीं, दोनों* दिन करेगा ??
कौन सिर पर हाथ रखेगा
चिंता मत कर कौन कहेगा ??
देख हमारी पीड़ा रो पड़ते थे जो
बाहर से कठोर, भीतर से मोम थे वो।
सबकी मदद को तत्पर रहते जो
हाँ, मेरे पापा थे वो
हाँ, मेरे पापा थे वो।
जीवन के हर पल हर क्षण में
सुख की घड़ी में दुःख के पल में
कामयाबी और नाकामी में
याद आएगी हर सीख उनकी
जब जब आएगी याद उनकी।
हे ईश्वर, छोड़ हम सब को
आए हैं वे अब तेरे द्वारे।
रखना शरण में उन्हें अपनी तुम 🙏🏻
पापा हैं वो मेरे प्यारे।
पापा थे वो मेरे प्यारे।
ओम् शांति 
meना
* हिन्दू व अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक