Sunday, March 22, 2020

जनता कर्फ्यू

२२/०३/२०२०

प्रिय पाठकगण,
आज की यह कविता जनता कर्फ्यू से प्रेरित होकर लिखी है। आशा करती हूँ आप सबको पसंद आएगी।🙏


बैठती तो रोज़ ही होगी मुंडेर पर,
चहकती भी होगी शायद ।
लोगों के शोरोगुल में,
सुनाई कम देती होगी हमें ।

आज सुबह उसके ही,
चहकने से आँख खुली ।
खिड़की से झांका सन्नाटा था,
आदमी एक ना आधा था ।

केवल सुरक्षा कर्मी सुनाई दिए,
फ़र्ज़ ने उनको बांधा था ।
जनता कर्फ्यू ने हम सबको, 
घरों में अपने बिठाया था ।

आज न कोई बंदूक चलेगी,
ना कहीं बम फूटेगा ।
जान पे बन आई है यारों,
ख़ाक कोई कुछ लूटेगा ।

अलग थी विचारधारा जिनकी,
थे मतभेद जिनके मन में ।
एक स्वर में बोल रहे हैं,
एकजुट अब हो गए हैं ।

 जो काम कोई कर न सका वह,
एक विषाणु ने कर दिखाया ।
हम सब को एक छत के नीचे,
लाके खड़ा अब कर दिया ।

कुदरत तेरे खेल निराले !
कैसे कैसे खेले खेले ।
मानवता का सबक सिखाने,
नित-नए रंग तू है बदले ।

ऐ मानव! अब तो जाग,
फ़र्ज़ से अपने ऐसे ना भाग ।
कुदरत ने जो तुझे दिया है,
उसका संतुलन ना बिगाड़ । 🙏

meना 




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