Tuesday, February 25, 2025

बातों की खिचड़ी

 25/02/2025


बातों की खिचड़ी 


यह बात उस शाम की है जब मेरी एक प्रिय सखी ने मुझे फ़ोन किया था……


फ़ोन की घंटी बजी 

देखा सखी का नंबर है

फिर क्या था….

फिर, ऐसे शुरू हुआ बातों का सिलसिला

कि घड़ी देखने का समय ही नहीं मिला।


कुछ उसने कही कुछ मैंने सुनाई

हँसी-मज़ाक़ और चुटकुलों में

दोनों ने सुधबुध गँवाई। 

और ऐसे हमने अपनी शाम बिताई। 


मिलकर खूब कीं दुख-सुख की बातें

बच्चों की पढ़ाई, सास ससुर की सेहत 

से लेकर इस उस की चुग़ली की बातें। 


अचानक दरवाज़े की घंटी बजी

और दिल में मानो खलबली सी मची। 

यह दस्तक पति देव के आगमन की थी

और मैंने रसोई अब तक नहीं बनाई थी। 😬🫢


आते ही पूछने लगे, “क्या बनाया है?

खाना लगा दो भूख लगी है।”

मुँह से निकाला, “बैठो तो परोसती हूँ

वैसे, खाने में आज बातें पकाई हैं।”🙃


हँसी ठठोली की सब्ज़ी और दाल संग 

चिंता और फ़िक्र की रोटी और चावल हैं। 

चुग़ली की चटपटी चटनी के साथ

फालतू बातों का पापड़ भी है। 

देखो, ज़रा उस ओर टेबल के कोने पे 

तारीफ़ों की मिठाई रखी है। 


“खाना कैसा लगा ज़रा बताना”

सुनते ही पति देव हँस पड़े और बोले,

“अच्छा तो आज सखी से बत्याई हो 

जभी खाना अब तक नहीं पकाई हो।” 


मैंने कहा, “ तनिक ठहरिए अभी कुछ बनाती हूँ

मन प्रफुल्लित है तो कुछ बढ़िया पकाती हूँ। 

आप तब तक सुस्ता लीजिए 

मैं खाना लेकर अभी आती हूँ।“😀


तो जी ऐसे कटी मेरी वह शाम,

जब तन-मन को मानो मिला हो आराम। 


अंत में एक लाइन कहना चाहूँगी…..

अपने प्रिय मित्र/सखी से बात करते रहना चाहिए 

चाहे बेतुकी बातें हों या काम की, क्यों कि 

उन बातों से बनी खिचड़ी भी लज़ीज़ होती है। 

उन बातों से बनी खिचड़ी भी लज़ीज़ होती है।


meना

Monday, September 2, 2024

आओ सखी…..अच् सखी

02/09/‘24 Monday 

प्रिय मित्रों 
मेरी प्रस्तुत कविता मैंने अपनी मातृभाषा, सिंधी (देवनागरी लिपि) में लिखी है। इसे सब पढ़ और समझ सकें उस हेतु इस कविता का हिन्दी में भावार्थ भी लिखा है। आशा करती हूँ मेरी यह सरल रचना आपको पसंद आएगी। कृपया अपने विचार कमेंट के ज़रिये साझा करें और इस कविता को अपने मित्रों और रिश्तेदारों के साथ (अपने ख़ास सखी/सखा के साथ भी) साझा (share) करें। 

धन्यवाद 🙏🏻

                     

 अच् सखी…..       (देवनागरी लिपि)

अच् सखी गड्जी चांए पीऊँ ☕️
वेही गा्ल्ह्यूं ब चार कयूं। 
कुझ तूं चओ, कुझ मां बुधायाँ 
खिली, खाई पंहिजा ग़म विसार्यूँ। 
अच् सखी गड्जी चांए पीऊँ….. 

रुधा प्या आहियूं कम-कार में 
घर-बार अंये रिश्तेदारन् में।
ख़ुश न थींदा जेके कड्ंहि भी
भले कोशिशूं हज़ार कयूं।
अच् सखी गड्जी चांए पीऊँ….. 

थोड़ी चुग़ली थोड़ा चट्टा, 
पाए सुठा अंये नवां लट्टा 
हल त शापिंग ते हलूं। 
घुमूं-फिरूं मौज कयूं 
कुझ वक़्त लाए घर-बार विसार्यूँ। 
अच् सखी गड्जी चांए पीऊँ….. 

चांए त रुगो् हिकु बहानो आ 
हक़ीक़त में ज़िंदगी जो मज़ों माणिणो आ। 
अच् त पुराण्यूं मिठ्यूं गा्लिहियूं याद कयूं।
नन्डपिण ज्यां टहक लगा्ए शाद रहूँ। 
अच् सखी गड्जी चांए पीऊँ…..

 meना 


 आओ सखी.....       (हिन्दी)

आओ सखी चाय पीते हैं  ☕️
बैठ बातें दो चार करते हैं। 
कुछ तुम कहो, कुछ मैं सुनाऊँ 
हँसते-हँसाते सारे ग़म भुलाते हैं। 
आओ सखी चाय पीते हैं….. 

सदैव व्यस्त रहते काम-काज में
बच्चों, बड़ों और रिश्तेदारों में। 
प्रसन्न ना होंगे जो कभी भी 
चाहे जतन हम हज़ार करते हैं। 
आओ सखी चाय पीते हैं….. 

चटपटी गपशप और चाट, पहन नए ठाठ 
चल, शॉपिंग को चलते हैं। 
घूमें-फिरें मौज करें
कुछ पलों के लिए सब-कुछ बिसराते हैं। 
आओ सखी चाय पीते हैं….. 

चाय तो केवल बहाना है 
वास्तव में ज़िंदगी को खुलकर जीना है। 
आओ, बीती अच्छी बातें याद करते हैं 
बचपन के उन ठहाकों से दिल शाद करते हैं।  
आओ सखी चाय पीते हैं….. 

 meना

Friday, August 2, 2024

वृष्टि

02/08/‘24


 मेरी यह कविता उस विशेष व्यक्ति (लक्ष्मी मैडम) को समर्पित है जो कि न केवल मेरे लिए अपितु मेरी जैसी कई महिलाओं के लिए एक प्रेरणा का स्रोत रही हैं। आज उनसे बिछड़ने के भाव को इस कविता के माध्यम से आप सब के समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ; जिसकी प्रेरणा आज सुबह से हो रही बारिश ने दी है। आशा करती हूँ कि यह आपको पसंद आएगी। आप अपने विचार comment के ज़रिये व्यक्त कर सकते हैं। धन्यवाद 🙏🏻


तैयारी थी रोज़ आने की 

पर आती न थी तुम 

आज आई हो जब मन है

दुख के सागर में गुम। 


क्या तो दिन चुना है बरसने का, क़सम से

जब बिछड़ रहा है कोई अपना हमसे 

औरों के लिए होगी तुम वृष्टि, पर 

इन आँखों का कार्य आज हो रहा तुमसे। 

इन आँखों का कार्य आज हो रहा तुमसे। ⛆☔😢


meना 


Tuesday, October 25, 2022

ये सड़क…..

25/10/2022



Hello friends, 

This Poem is about a city that witnessed Diwali Night followed by the Solar Eclipse in the year 2022. 


 

meना 





Thursday, October 13, 2022

ऐसा क्यूँ?

आज जहाँ नज़र दौड़ाओ वहाँ हर रिश्ता फीका या कमज़ोर 

दिखाई देता है; चाहे वह माता-पिता और बच्चों का हो, 

भाई-बहन, पति-पत्नी या दोस्ती का। 

इसी बात से प्रेरित होकर मैंने अपनी यह कविता लिखी है।

आशा करती हूँ आप भी इस बात से सहमत होंगे।

धन्यवाद 🙏🏻


meना 

Monday, September 5, 2022

आसान नहीं एक शिक्षक होना….


 ०५/०९/२०२२

आजइस शिक्षक दिवस परमैं अपने सभी शिक्षकों को सादर नमन 🙏🏻 करती हूँ। और, उन्हें और दुनिया के सभी शिक्षकों को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ देती हूँ। 🙏🏻😊



संघर्ष भरा जीवन है जिसका

परदिखता फूलों पे चलने सा। 


स्वयं को दीपक सा जलाता

प्रकाश ज्ञान का है फैलाता। 


सदैव खुद को अद्यावधिक रखता 

सीखने की खिड़की सदा खुली रखता। 


छात्रों पे ममता बरसाता

साथ ही उनमें संस्कार पिरोता। 


भूल जाता वह खाना-सोना

आसान नहीं एक शिक्षक होना। 


आज शिक्षा का स्तर कम हो रहा है

शिक्षणकेवल कमाई का साधन बन रहा है। 


सरकारी शिक्षक बनने की होड़ लगी है 

हर गलीहर नुक्कड़ पे एक क्लास खुली है। 


शिक्षक”, बनता नहींपैदा होता है

सच्चा शिक्षक परमेश्वर का स्वरूप होता है। 


लोभ लालच को पड़ता है खोना 

इसलिएआसान नहीं एक शिक्षक होना। 

आसान नहीं एक शिक्षक होना। 


meना

Happy Teacher’s Day.