Friday, August 2, 2024

वृष्टि

02/08/‘24


 मेरी यह कविता उस विशेष व्यक्ति (लक्ष्मी मैडम) को समर्पित है जो कि न केवल मेरे लिए अपितु मेरी जैसी कई महिलाओं के लिए एक प्रेरणा का स्रोत रही हैं। आज उनसे बिछड़ने के भाव को इस कविता के माध्यम से आप सब के समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ; जिसकी प्रेरणा आज सुबह से हो रही बारिश ने दी है। आशा करती हूँ कि यह आपको पसंद आएगी। आप अपने विचार comment के ज़रिये व्यक्त कर सकते हैं। धन्यवाद 🙏🏻


तैयारी थी रोज़ आने की 

पर आती न थी तुम 

आज आई हो जब मन है

दुख के सागर में गुम। 


क्या तो दिन चुना है बरसने का, क़सम से

जब बिछड़ रहा है कोई अपना हमसे 

औरों के लिए होगी तुम वृष्टि, पर 

इन आँखों का कार्य आज हो रहा तुमसे। 

इन आँखों का कार्य आज हो रहा तुमसे। ⛆☔😢


meना