Monday, September 2, 2024

आओ सखी…..अच् सखी

02/09/‘24 Monday 

प्रिय मित्रों 
मेरी प्रस्तुत कविता मैंने अपनी मातृभाषा, सिंधी (देवनागरी लिपि) में लिखी है। इसे सब पढ़ और समझ सकें उस हेतु इस कविता का हिन्दी में भावार्थ भी लिखा है। आशा करती हूँ मेरी यह सरल रचना आपको पसंद आएगी। कृपया अपने विचार कमेंट के ज़रिये साझा करें और इस कविता को अपने मित्रों और रिश्तेदारों के साथ (अपने ख़ास सखी/सखा के साथ भी) साझा (share) करें। 

धन्यवाद 🙏🏻

                     

 अच् सखी…..       (देवनागरी लिपि)

अच् सखी गड्जी चांए पीऊँ ☕️
वेही गा्ल्ह्यूं ब चार कयूं। 
कुझ तूं चओ, कुझ मां बुधायाँ 
खिली, खाई पंहिजा ग़म विसार्यूँ। 
अच् सखी गड्जी चांए पीऊँ….. 

रुधा प्या आहियूं कम-कार में 
घर-बार अंये रिश्तेदारन् में।
ख़ुश न थींदा जेके कड्ंहि भी
भले कोशिशूं हज़ार कयूं।
अच् सखी गड्जी चांए पीऊँ….. 

थोड़ी चुग़ली थोड़ा चट्टा, 
पाए सुठा अंये नवां लट्टा 
हल त शापिंग ते हलूं। 
घुमूं-फिरूं मौज कयूं 
कुझ वक़्त लाए घर-बार विसार्यूँ। 
अच् सखी गड्जी चांए पीऊँ….. 

चांए त रुगो् हिकु बहानो आ 
हक़ीक़त में ज़िंदगी जो मज़ों माणिणो आ। 
अच् त पुराण्यूं मिठ्यूं गा्लिहियूं याद कयूं।
नन्डपिण ज्यां टहक लगा्ए शाद रहूँ। 
अच् सखी गड्जी चांए पीऊँ…..

 meना 


 आओ सखी.....       (हिन्दी)

आओ सखी चाय पीते हैं  ☕️
बैठ बातें दो चार करते हैं। 
कुछ तुम कहो, कुछ मैं सुनाऊँ 
हँसते-हँसाते सारे ग़म भुलाते हैं। 
आओ सखी चाय पीते हैं….. 

सदैव व्यस्त रहते काम-काज में
बच्चों, बड़ों और रिश्तेदारों में। 
प्रसन्न ना होंगे जो कभी भी 
चाहे जतन हम हज़ार करते हैं। 
आओ सखी चाय पीते हैं….. 

चटपटी गपशप और चाट, पहन नए ठाठ 
चल, शॉपिंग को चलते हैं। 
घूमें-फिरें मौज करें
कुछ पलों के लिए सब-कुछ बिसराते हैं। 
आओ सखी चाय पीते हैं….. 

चाय तो केवल बहाना है 
वास्तव में ज़िंदगी को खुलकर जीना है। 
आओ, बीती अच्छी बातें याद करते हैं 
बचपन के उन ठहाकों से दिल शाद करते हैं।  
आओ सखी चाय पीते हैं….. 

 meना

Friday, August 2, 2024

वृष्टि

02/08/‘24


 मेरी यह कविता उस विशेष व्यक्ति (लक्ष्मी मैडम) को समर्पित है जो कि न केवल मेरे लिए अपितु मेरी जैसी कई महिलाओं के लिए एक प्रेरणा का स्रोत रही हैं। आज उनसे बिछड़ने के भाव को इस कविता के माध्यम से आप सब के समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ; जिसकी प्रेरणा आज सुबह से हो रही बारिश ने दी है। आशा करती हूँ कि यह आपको पसंद आएगी। आप अपने विचार comment के ज़रिये व्यक्त कर सकते हैं। धन्यवाद 🙏🏻


तैयारी थी रोज़ आने की 

पर आती न थी तुम 

आज आई हो जब मन है

दुख के सागर में गुम। 


क्या तो दिन चुना है बरसने का, क़सम से

जब बिछड़ रहा है कोई अपना हमसे 

औरों के लिए होगी तुम वृष्टि, पर 

इन आँखों का कार्य आज हो रहा तुमसे। 

इन आँखों का कार्य आज हो रहा तुमसे। ⛆☔😢


meना