Sunday, September 21, 2025

ऐ ज़िंदगी

 21/09/2025

प्रिय पाठकगण,

प्रणाम 🙏🏻। मेरी प्रस्तुत कविता दीपावली के आगमन से पहले की जानेवाली सफ़ाई से प्रेरित है। ख़ास कर उस एक विंड चाइम्स से प्रेरित है जो तेज़ हवाओं के चलते उलझ सी गई थी और इस वजह से उसके मधुर स्वर कम सुनाई देते थे।

 आशा करती हूँ कि मेरी यह कविता भी आपके दिलों को स्पर्श करेगी। आप सब के स्नेह और आशीर्वाद के लिए आपकी आभारी हूँ। कृपया अपने सुझाव और विचार कमेंट के ज़रिए अवश्य व्यक्त करें। धन्यवाद। 🙏🏻

(** हो सके तो कमेंट में अपना नाम ज़रूर लिखिएगा। इस से मुझे जवाब लिखने में आसानी होगी।)



  ज़िंदगी


आओ सुलझा दूँ तुम्हें

उलझनें मिटा दूँ तुम्हारी, ऐ ज़िन्दगी। 

हौले से, अपने अंतर्मन की गाँठें खोलूँ, ऐ ज़िन्दगी।


मन पर लगे जाले हैं जो 

आत्मा पर दिखते दाग से वो 

आज, ख़ुद से बैठ उनको साफ़ करूँ, ऐ ज़िंदगी।

आओ सुलझा दूँ तुम्हें, ऐ ज़िंदगी। 


कुछ रिश्ते नाज़ुक हैं

कुछ लोग ज़िद्दी हैं

बारी-बारी सबको संभालूँ , ऐ ज़िन्दगी। 

आओ सुलझा दूँ तुम्हें, ऐ ज़िंदगी। 


समय की गहराई में दब चुके हैं जो

कुछ भूले-बिसरे नाते हैं वो 

आज, उनपर से धूल हटाऊँ, ऐ ज़िंदगी। 

आओ सुलझा दूँ तुम्हें, ऐ ज़िंदगी। 


हर्षोल्लास की हवा से टकराकर 

फिर से अपनेपन और ख़ुशी के स्वर निकाले ऐसी 

उलझी विंड चाइम्स नुमा ज़िंदगी के धागे सुलझा दूँ, ऐ ज़िंदगी। 

आओ सुलझा दूँ तुम्हें, ऐ ज़िंदगी।



meना


** विंड चाइम्स - पवन घंटी 


Tuesday, September 16, 2025

दोस्त गर साथ हो तो…..

 16/09/2025

प्रिय पाठकगण, 


मेरी प्रस्तुत कविता हर उस व्यक्ति के लिए है जिसके लिए उसका दोस्त केवल दोस्त नहीं बल्कि एक साथी है जो हर सुख:दुख में उसके साथ खड़ा / खड़ी है। आशा करती हूँ आपको यह पसंद आएगी। कृपया अपने विचार कमेंट के ज़रिए साझा करें। धन्यवाद। 


दोस्त गर साथ हो तो…..


दोस्त गर साथ हो तो

धूप भी छाँव लगती है।

सड़क किनारे की चाय भी ख़ास लगती है,

मोहल्ले के नुक्कड़ और गलियाँ भी 

लंदन और फ्रांस लगती हैं। 


दोस्त गर साथ हो तो

क्या दिन, क्या रात 

जब देखो कोई न कोई बात। 

बातों का पिटारा जैसे ख़त्म ही नहीं होता!

कहीं मिलो, तो घर जाने का मन ही नहीं होता। 


दोस्त गर साथ हो तो

अंधेरे में उजाला लगता है। 

मुश्किल वक्त में भी हौंसला बँधा रहता है।

“कोई नहीं यार, साथ में फोड़ लेंगे” 

वाला जज़्बा बना रहता है। 


दोस्त गर साथ हो तो

धूप भी छाँव लगती है।

सड़क किनारे की चाय भी ख़ास लगती है,

मोहल्ले के नुक्कड़ और गलियाँ भी 

लंदन और फ्रांस लगती हैं। 


meना

Tuesday, February 25, 2025

बातों की खिचड़ी

 25/02/2025


बातों की खिचड़ी 


यह बात उस शाम की है जब मेरी एक प्रिय सखी ने मुझे फ़ोन किया था……


फ़ोन की घंटी बजी 

देखा सखी का नंबर है

फिर क्या था….

फिर, ऐसे शुरू हुआ बातों का सिलसिला

कि घड़ी देखने का समय ही नहीं मिला।


कुछ उसने कही कुछ मैंने सुनाई

हँसी-मज़ाक़ और चुटकुलों में

दोनों ने सुधबुध गँवाई। 

और ऐसे हमने अपनी शाम बिताई। 


मिलकर खूब कीं दुख-सुख की बातें

बच्चों की पढ़ाई, सास ससुर की सेहत 

से लेकर इस उस की चुग़ली की बातें। 


अचानक दरवाज़े की घंटी बजी

और दिल में मानो खलबली सी मची। 

यह दस्तक पति देव के आगमन की थी

और मैंने रसोई अब तक नहीं बनाई थी। 😬🫢


आते ही पूछने लगे, “क्या बनाया है?

खाना लगा दो भूख लगी है।”

मुँह से निकाला, “बैठो तो परोसती हूँ

वैसे, खाने में आज बातें पकाई हैं।”🙃


हँसी ठठोली की सब्ज़ी और दाल संग 

चिंता और फ़िक्र की रोटी और चावल हैं। 

चुग़ली की चटपटी चटनी के साथ

फालतू बातों का पापड़ भी है। 

देखो, ज़रा उस ओर टेबल के कोने पे 

तारीफ़ों की मिठाई रखी है। 


“खाना कैसा लगा ज़रा बताना”

सुनते ही पति देव हँस पड़े और बोले,

“अच्छा तो आज सखी से बत्याई हो 

जभी खाना अब तक नहीं पकाई हो।” 


मैंने कहा, “ तनिक ठहरिए अभी कुछ बनाती हूँ

मन प्रफुल्लित है तो कुछ बढ़िया पकाती हूँ। 

आप तब तक सुस्ता लीजिए 

मैं खाना लेकर अभी आती हूँ।“😀


तो जी ऐसे कटी मेरी वह शाम,

जब तन-मन को मानो मिला हो आराम। 


अंत में एक लाइन कहना चाहूँगी…..

अपने प्रिय मित्र/सखी से बात करते रहना चाहिए 

चाहे बेतुकी बातें हों या काम की, क्यों कि 

उन बातों से बनी खिचड़ी भी लज़ीज़ होती है। 

उन बातों से बनी खिचड़ी भी लज़ीज़ होती है।


meना